क्या जाने कब कहाँ से चुराई मेरी ग़ज़ल
उस शोख ने मुझी को सुनाई मेरी ग़ज़ल
पूछा जो मैंने उस से के है कौन खुश -नसीब
आँखों से मुस्कुरा के लगाई मेरी ग़ज़ल
एक -एक लफ्ज़ बन के उड़ा था धुंआ -धुंआ
उस ने जो गुनगुना के सुनाई मेरी ग़ज़ल
हर एक शख्स मेरी ग़ज़ल गुनगुनाएं हैं
... ‘ राही ’ तेरी जुबां पे ना आई मेरी ग़ज़ल
उस शोख ने मुझी को सुनाई मेरी ग़ज़ल
पूछा जो मैंने उस से के है कौन खुश -नसीब
आँखों से मुस्कुरा के लगाई मेरी ग़ज़ल
एक -एक लफ्ज़ बन के उड़ा था धुंआ -धुंआ
उस ने जो गुनगुना के सुनाई मेरी ग़ज़ल
हर एक शख्स मेरी ग़ज़ल गुनगुनाएं हैं
... ‘ राही ’ तेरी जुबां पे ना आई मेरी ग़ज़ल
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